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Saturday, April 21, 2012

समानता: ...रफ्तार ने ढहाया कहर ईश्वर ने इस संसार के सभी प...

समानता:

...रफ्तार ने ढहाया कहर

ईश्वर ने इस संसार के सभी प...: ...रफ्तार ने ढहाया कहर ईश्वर ने इस संसार के सभी प्राणियों को एक ऐसी अलौकिक शक्ति प्रदान की है जिसके अभाव में कोर्ई भी जीव (अब चाहे वह म...

Thursday, August 11, 2011


देशभक्तों की कुर्बानियां और हमारे स्वार्थ में होती 'जंग'
15 अगस्त के ऐतिहासिक महत्व को हर कोई जानता है इसे किसी परिचय की आवश्यकता नहीं है। शिक्षित वर्ग अच्छी तरह से जानता है कि हमारे शूरवीर क्रांतिकारियों ने अपने प्राणों की परवाह न कर देश की आजादी के लिए बलिदान वेदी पर अपनी आहूति दी और अपनी आने वाली पीढी के लिए खुशहाल, स्वाधीन, गौरवमय माहौल देने के सपना लिए वे इस दुनिया को अलविदा कह गए।
   पर क्या आज जो कुछ हमारे देश, समाज में घटित हो रहा है उसकी कल्पना हमारे पूर्वजों, स्वतंत्रता संग्राम में शामिल, क्रांतिकारियों ने की होगी? आज जहां देखों वहीं लूटपाट, बलात्कार, भ्रष्टाचार और घोटालों का ही बोलबाला है। आप कोई भी चैनल, समाचार पत्र देखों उस में यहीं सब चीजें प्रमुखतया से आपको देखने को मिलेंगी। 
  गीता में कहा गया है कि आत्मा अजर है, अमर है.. अगर इन बातों को आधार बनाकर देखा जाये तो हमारे क्रांतिकारियों की आत्माएं आज हमारी दयनीय, असहाय और लालचपूर्ण रवैये को देखकर हमें कचौटती होगी और कहती होगी हमने भी किन लोगों को स्वाधीन कराने के लिए अपने जीवन के सभी सुखों को त्याग दिया था। इनके लिए तो वो अंगे्रजो के शासन वाला समय ही अच्छा होता, कब से कब कोडे के भय के चलते इतने घोटाले और भ्रष्टाचार, लूटपाट तो न होती।
  1857 के स्वतंत्रता संग्राम को चिंगारी देने वाले मंगल पांडे, सुभाषचंद बोस, भगतसिंह, चंद्रशेखर आजाद, लाला लाजपत राय, सुखदेव, बटुकेश्वर दत्त, राजगुरू, लोकमान्य तिलक आदि क्रांतिकारियों ने अपने सम्पूर्ण जीवन को 'भारत माता' को स्वतंत्रता दिलाने में लगा दिया था। देश को आजादी दिलाने के लिए महात्मा गांधी ने 9 अगस्त 1942 को 'करो या मरो' का नारा दिया था जिसमें समाज के हर वर्ग ने बढ़-चढकर हिस्सा लिया और देश को आजादी के द्वार पर पहुंचाया। पर आज का युवा  और बुद्धिजीवी वर्ग को समाज में फैली अव्यवस्था और 'कुप्रथा' से कोई लेना देना नहीं है बल्कि सभी उसी प्रथा के तहत अपना योगदान दे रहे है। किसी प्रकार का कोई विरोध स्वर नहीं उठाता है अगर कोई उठाने की हिम्मत करता भी है तो सरकार उसका क्रूरतापूर्वक दमन करने को आतुर है। 
  हाल ही में बाबा रामदेव के रामलीला मैदान में आयोजित अनशन का शासन ने कुछ इसी तरह से दमन किया था। लोकपाल बिल का झंडा लेकर चल रहे अन्ना हजारे ने देश से भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए एक मुहिम चलायी हुई है जिसमें युवा वर्ग कुछ दिलचस्पी ले भी रहा है। अन्ना हजारे और सरकार में लोकपाल बिल पर मतभेद है। अब देखना यह होगा कि 'महात्मा' हजारे अपने अगस्त आंदोलन से सरकार को कितना हिला पाते है। यह आंदोलन 16 अगस्त से जयप्रकाश नारायण नेशनल पार्क से शुरू होने वाला है।

Thursday, August 4, 2011

Facebook ur Ghaziabad


गाजियाबाद पुलिस की ''फेसबुक'' में लोगों का भरोसा नहीं ?
अत्याचार, अव्यवस्था के खिलाफ अब पूरी दुनिया में आवाजें उठने लगी है। सब लोगों का विरोध करने का तरीका अलग-अलग है कुछ लोग समूहों में एकत्र होकर, धरने-प्रदर्शन कर अपना विरोध जताते है तो दूसरी तरफ कुछ लोग (जिन्हें आप नेटीजन कहे सकते है) इंटरनेट के माध्यम से अपना विरोध प्रकट करते है। ऐसा पिछले कुछ दिनों में देखने को मिला भी । हाल ही में पश्चिम बंगाल में हुए चुनावों में इन नेट यूजर्स ने बड़ी भूमिका निभाई। नेट के माध्यम से लोगों को निवर्तमान सत्ता के खिलाफ सोचने और कुछ नया करने के लिए प्रेरित किया गया। जिसके चलते तीन दशक से ज्यादा कब्जा जमाये सत्ताधारियों को अपनी कुर्र्सी से हाथ धोना पड़ा।
सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक के जरिए लोग अपना विरोध आसानी से जता रहे है। विरोध शासन-प्रशासन में फैली अव्यवस्था के खिलाफ हो  या फिर बीच सड़क में जाम लगाये पुलिस कर्मियों की बदइंतजामी के। फेसबुक पर दिल्ली ट्रैफिक पुलिस के पेज को अब तक 73 हजार से ज्यादा लोग पसंद कर चुके है। इसके लोकप्रिय होने का कारण यह है कि फेसबुक यूजर्स कहीं भी दिल्ली पुलिस या अन्य लोगों को बिना हेलमेट पहने, बिना सीट बेल्ट लगाये या वाहन चलाते वक्त मोबाइल का यूज करते हुए उनकी फोटो को अपने कैमरे में कैद कर लेते है औैर उसे दिल्ली ट्रैफिक पुलिस के अकाउंट पर समय और जगह के साथ डाल देते है। जिसके जवाब में दिल्ली पुलिस प्रभावी कार्रवाई करती है। दिल्ली की तर्र्ज पर फरीदाबाद में भी फरीदाबाद ट्रैफिक पुलिस ने अपना अकाउंट बनाया है जिसे कुछ ही समय में 700 से अधिक लोगों ने लाइक किया है। फरीदाबाद के लोगों में इस नये तरीके से की जाने वाली कार्रवार्ई के चलते एक जूनून सा छाया हुआ है। 
 फेसबुक यूजर्स की इस दौड़ में उत्तर प्रदेश काफी पीछे रह गया है।  यूपी ट्रैफिक पुलिस के अकाउंट को 2500 से अधिक लोगों ने लाइक किया है। नोएडा टे्रफिक पुलिस के अकाउंट को अब तक लगभग 500 लोगों ने पसंद किया है। जबकि गाजियाबाद ट्रैफिक पुलिस के अकांउट को लाइक करने वाले लोगों को आंकड़ा बहुत कम है। इनकी संख्या शतक से भी कम है। क्या गाजियाबाद की पब्लिक तकनीक की इस दौड़ में पिछड़ गयी है ? या फिर लोगों में गाजियाबाद पुलिस द्वारा की जाने वाली कार्रवाई के प्रति विश्वास की कमी है? कुछ लोगों का कहना है कि जब यूपी पुलिस ऑन रोड़ घटित होती घटना को ही नहीं रोक पाती तो नेट के माध्यम से क्या कार्रवाई करेगी! शायद इसी वजह के चलते नेटीजन गाजियाबाद ट्रैफिक पुलिस अकाउंट को कम लाइक करते है।  

Friday, June 24, 2011

''जहाँ चाहे शिकायत कर लो, यहाँ ऐसे ही काम होता हैं'' 
मैं दूसरा काउंटर शुरू  नहीं करने वाला, जहां चाहे वहां शिकायत कर लो। मैं अपने हिसाब से यहां काम कराऊंगा बस। अब चाहे किसी का काम हो या न हो और दूसरे बैंक की भी तो यहां शाखाएं है। वहां काम करा लो बस, यहां तो ऐसे ही काम होगा । यह बोल एक स्थानीय एसबीआई बैंक में कार्यरत प्रबंधक के पद पर तैनात सरकारी कर्मचारी के है। उसने यह सब बातें उस वक्त कहीं जब दो-तीन घंटों से लाइन में खड़े होने के बाद कुछ लोगों को लगा कि अब उनका काम होने वाला नहीं है। एसबीआई बैंक ने  रिक्त पदों के लिए विज्ञापन जारी किया था जिसके चलते ऑनलाइन फार्म जमा करना होता है । इससे पूर्र्व आपको एसबीआई बैंक की किसी भी शाखा में जाकर चालान फार्र्म के माध्यम से शुल्क जमा कराना होता है। विज्ञापन के बारे में पता चलने पर मैंने भी सोचा कि चलों मैं भी रिक्त पदों के लिए अपना आवेदन भर देता हूं। इसी सोच के चलते मैं चालान फार्म भरकर उसे जमा कराने एसबीआई बैंक चल दिया।  बैंक पहुंचकर वहां का हाल देखा तो बस अपनी बेरोजगारी और सरकारी व्यवस्था पर बहुत क्रोध आया। वैसे तो बैंक में 7-8 काउंटरों पर काम हो रहा था पर एक काउंटर  पर 40-50 आदमी लंबी लाइन में खड़े हुए थे। बाकी सब काउंटर पर 5-6 लोग ही अपना काम करवा रहे थे। मैंने बैंक  के सुरक्षा कर्मी से पता किया कि सर, एसबीआई की वेकेंसी के जो फार्म निकले हुए है उनकी फीस किस काउंटर पर जमा हो रही है। सुरक्षा कर्मी ने मुस्कान देते हुए कहा -वो देखों जो सबसे लंबी लाइन दिख रही है बस वहां ही हो रही है। इतनी लंबी लाइन देखकर मैं समझ गया कि यहां लगने के बाद कम से कम तीन घंटे लगेंगे तब कहीं जाकर नंबर आएगा और इस बीच कहीं लंच की घंटी बज गयी तो फिर चार-पांच घंटे लाइन में ही बर्बाद हो जाएंगे। मैंने सोचा कि चलो अब में घर वापस चलता हूं लंच के बाद ही वापस आता  हूं  शायद लंच के बाद इतनी लंबी लाइन न मिले और यह भीड भी कम हो जाए। लंच के बाद जब में फिर से बैंक पहुंचा तो मैंने देखा जो हाल पहले था वो ही हाल अब भी बना हुआ था। मैंने कहा अब तो मजबूरी है इस लंबी लाइन में लगना ही पडेगा। सो में लाइन में लग गया । मेरे पीछे एक चश्मा लगाए अंकल भी आकर लग गये। 30-40 मिनट बीत जाने के बाद अंकल ने कहा 4 बजे तक तो लगता नहीं कि हमारा नंबर आ पाएगा, कल भी काम नहीं हो पाया था और शायद आज भी नहीं हो पाएगा। अंकल बोले-चलो मैनेजर से जाकर कहा जाए कि एक दूसरा काउंटर शुरू  करा दे जिससे सब का जल्दी-जल्दी काम हो जाए। पर मैनेजर के पास जाने से कुछ फायदा नहीं हुआ उन्होंने साफ-साफ  कह दिया कि किसी का काम हो या न हो, मैं दूसरा काउंटर शुरू नहीं करवाने वाला हूं। जहां चाहे वहां शिकायत कर लो। अब मैं, अंकल और वो दो लोग जो हमारे साथ मैनेजर से बात करने गये थे क्या करते। अगर हमें भी लाइन में लगे और लोगो का सपोर्ट मिलता तो शायद मेरा  और दुसरे लोगो का काम बन जाता! जाने क्यों इस दौर में लोग सब कुछ देखकर भी अनदेखा करने में लगे है. जब की और दुसरे लोगो को भी पता था की उनका भी काम नहीं होने वाला पर कोई कुछ बोलने को तैयार नहीं था. जाने लोगों में क्या अजीब सा "डर" घर कर गया है जो सब कुछ देखकर भी कोई कुछ बोलने की हिम्मत नहीं करता...जाने हमारा शिक्षित समाज किस अंधकार की और चल पड़ा हैं . हमारी (अल्पमत लोगों की) उस मैंनेजर ने बात नहीं मानी और मुझे बिना काम कराए परेशान होकर वापस लौटना पड़ा।

Saturday, June 18, 2011




अनशन बनाम राजनीति
भटटा परसौल मुददे पर अपनी राजनैतिक रोटियां सेंकने वाले राहुल गांधी दिल्ली रामलीला मैदान में हुई पुलिस कार्रवाई पर चुप क्यों है?  उनकी यह चुप्पी आम लोगों के प्रति उनकी हमदर्दी, चिंता और विकासशील धारणा पर उंगली उठाती है।  सब दलों को पछाडकर सबसे पहले भटटा गांव पहुंचने वाले युवराज ने भटटा गांव के लोगों का हौंसला, हिम्मत बढायी थी। उधर भट्टा परसौल(ग्रेटर नोएडा) में यूपी सरकार और किसानों के बीच हुई जंग को पूरे देश की जनता ने देखा। इस जंग में 4 किसानों और 2 पुलिस कर्मियों की मृत्यु हो गई थी। भट्टा की आग से केंद्र भी सुलगने से नहीं बच सका और यूपीए सरकार के युवराज राहुल गांधी भट्टा परसौल पहुंच गए। राहुल गांधी  ने भट्टा गांव पहुंचकर किसानों का दुख दर्द सुना और उनकी आवाज को अपनी आवाज बनाकर उन्हें न्याय दिलाने की बात कही।
    भट्टा गांव के किसानों पर पुलिसिया कार्रवाई की आवाज राहुल गांधी को दिल्ली में पहुंच जाती है जबकि पिछले दिनों दिल्ली के रामलीला मैदान में बाबा रामदेव के अनशन में जुटे लोगों पर दिल्ली पुलिस की कार्रवाई के बाद मासूम जनता की आवाज उन्हें सुनाई नहीं देती। सभी टीवी चैनलों ने दिखाया कि किस तरह देश की मासूम और भोली जनता पर रात के 2 बजे दिल्ली पुलिस ने बर्बरतापूर्ण कार्रवार्ई की। इस कार्रवार्ई के दौरान जो भगदड़ मची उसमें न जाने कितने बेगुनाह लोगों को चोट आयीं। पर युवराज राहुल गांधी ने अभी तक देश की मासूम और निर्दोष लोगों पर हुई कार्रवार्ई के विरोध में कुछ प्रतिक्रिया देने की जरूरत नहीं समझीं और न ही यूपीए अध्यक्षा सोनिया गांधी ने इस बारे में कोई बयान जारी किया है। हां, एक बार फिर मान्यनीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अपने विवशता जाहिर की। उन्होंने रामलीला मैदान में हुई पुलिस की कार्रवाई को दुर्भाग्यपूर्ण बताया और इसके अलावा अन्य कोई विकल्प न होने की बात कही।  जनता जिसे भारतीय संविधान में सर्वोच्च शक्ति प्राप्त है। ऐसे मौको पर अपने को ठगा सा महसूस करती है।
   भ्रष्टाचार और गरीबी से त्रस्त जनता के लिए कोई नेता, बाबा या सामाजिक कार्यकर्ता लडऩे की बात करता है तो जनता में एक आशा की किरण जाग उठती है और उन्हें लगता कि  शायद...अब हमारी समस्या, मजबूरी से हमें छुटकारा दिलाने वाला आ गया है और बस अब हमें लूट, भ्रष्टाचार से राहत मिल जाएंगी। इस चाहत और विश्वास को लेकर मासूम लोग, महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग सभी अनशन में जुटते है। पर उन्हें इस चाहत के बदले क्या मिलता है ? आफत, परेशानी और पिटाई। आखिर कब तक देश की जनता पर सरकार अपनी नौकरशाही का रौब डालकर उसे डराती रहेगी और जन चेतना को दबाये रखेगी, जिस दिन इस चेतना ने ज्वाला को रूप धारण कर लिया तो कोई बल उन्हें भ्रष्टाचारसे मुक्ति दिलाने से नहीं रोक सकेगा।

Tuesday, May 10, 2011

...जब परम्परा को तोड़ निकली बारात 
21 वी सदीं की कन्याएं वर्षों पुरानी मान्यताएं, परंपराओं को तोड़कर नए इतिहास रच रही है। ऐसा ही कुछ भिवानी, हरियाणा की रहने वाली मोनिका ने कर दिखाया है। गांव खापड़वास निवासी सतबीर पुत्री मोनिका ने सदियों से चली आ रही रीति-रिवाजों के विरूद्घ ऐसा कार्र्य किया है जिससे पूरे गांव क्या पूरे हरियाणा में एक नयी चेतना की लहर दौड़ गयी है। मोनिका ने अपनी शादी से एक पूर्र्व लड़कों की तरह सिर पर पगड़ी बांधी और वे सभी रस्में निभायी जो एक लड़का शादी के समय निभाता है। पहली पर घोड़ी पर सवार दुल्हन को देखने के लिए पूरा गांव उमड़ पड़ा। घोड़ी सवार दुल्हन को देखकर लोगों में अजीब से खुशी थी तो कुछ लोगों में खेद भावना भी थी। पुरुष वर्र्ग का एक तबका इसे अपने अधिकारों पर किए गए आघात के रूप में ले रहा है। गांव में रहने वाली अनेेक महिलाआं ने मोनिका के इस साहसिक कार्य की भूरी-भूरी प्रशंसा की है। उन्होंने कहा कि अगर ऐसी घटना 50 साल  पहले होती तो आज देश में कन्याओं की कमी नहीं होती और लडकियों, महिलाओं को भी समाज में पूरा सम्मान मिल पाता। मोनिका के पति ने भी मोनिका के इस कदम की प्रशंसा की है। गांव के अनेक लोगों ने इस घटना को मोनिका के साहस, वीरता का परिचायक बताया है। समाज के बुद्घिजीवियों वर्ग का कहना है कि इस घटना के बाद अन्य कन्याओं में पुरुषों के समान 'शक्तिवान ' होने का विश्वास पैदा होगा। कुछ लोगों का कहना है कि इस घटना के बाद उन लोगों को सोचना चाहिए जो कन्या को संसार में आने से पहले ही उसकी हत्या कर देते है।


Monday, April 11, 2011

 ...जब अपनी ही भूमिका पर संदेह हो
अन्ना हजारे की देश को भ्रष्टाचार रूपी अकाल से मुक्ति दिलाने की मुहिम के आगे केंद्र सरकार को मंजूरी देनी पडी। इस मंजूरी के पीछे सरकार की कोई न कोई मजबूरी अवश्य रही है । तभी तो उनके ही मंत्री बिल की सफलता पर सवाल उठा रहे है। बिल के लिए गठित कमेटी के सरकारी सदस्य और केंद्रिय मंत्री कपिल सिब्बल और सलमान खुर्शीद को बिल की सफलता पर संशय है। सिब्बल ने लोकपाल बिल पर बोलते हुए कहा कि यह बिल देश से भ्रष्टाचार को दूर नहीं कर सकता। जरूरत व्यवस्था बदलने की है न की किसी कानून के बनाने की। हम समाजसेवी अन्ना हजारे के साथ बैठकर एक अच्छा बिल लायेंगे। उन्होंने कहा कि लोकपाल बिल से लोगों को पानी, बिजली, सिलेंडर, जैसी समस्याएं दूर नहीं हो पाएगी। सिब्बल के इस बयान पर नाराजगी जताते हुए अन्ना हजारे ने कहा कि अगर उन्हें बिल पर विश्वास नहीं है तो उन्हें कमेटी से अपना इस्तीफा देकर देश के लिए किसी अन्य काम में अपना समय दें। वहीं सलमान खुर्शीद ने भी कपिल सिब्बल के बयान का समर्थन किया है और उन्होंने कहा कि भगवान है फिर भी अपराध होते है। लोगों का कहना है कि भगवान और कुछ लोगों की ईमानदारी के चलते ही देश की व्यवस्था चल रही है। यानी राम भरोसे ही देश में आम आदमी जी पा रहा है। कोई सलमान जी से यह पूछे की अगर अपराध रोकने के लिए भगवान जी को ही आना है तो फिर सरकारें, अद्रसैनिक बल, पुलिस बल आदि अनेक बल क्यों गठित किये गए है? क्यों जनता सरकार का चुनाव करें ? आप चुनाव के दौरान जनता से क्यों आग्रह कर कहते है कि हमें वोट दीजिए हम आपको सुशासन, भय मुक्त समाज, बिजली, पानी देंगे?

Monday, March 28, 2011

...क्या-क्या नहीं होता क्रिकेट से
    जब-जब भारत और पाकिस्तान के बीच क्रिकेट मैच खेला जाता है तो दोनों देशों के लोग इसे मैच न मानकर एक युद्घ की तरह देखते हैं। इस युद्घ रूपी मैच में दोनों देशों  की सेनाएं (क्रि केट टीमें) अपनी पूरी ताकत लगा देते हैं। वहीं दोनों की जनता अपने-अपने ढंग से अपने देश को जीताने के लिए प्रार्थनाएं और दुआएं करते हैं। इस अवसर पर करोड़ों हाथ अपने देश को जीत दिलाने के लिए भगवान की तरफ उठते हैं। जहां जीत मिलने पर एक देश में दीवाली और जश्न का माहौल होता है तो हारने वाला देश गम के सागर में डूब जाता है।
    पाकिस्तान पर समय-समय पर मैच फिक्सिंग के आरोप लगते रहे हैं जिसके चलते पाकिस्तान के खिलाडिय़ों की खेल भावना पर उंगली भी उठाई जाती रही है। दुनिया भर से उठ रही तमांग उंगलियों के बावजूद अभी तक पाक के हुक्मरानों ने अपने देश के खिलाडियों के फिक्सिंग में शामिल होने के आरोपों को खारिज करते आए थे। लेकिन एक स्टिंग ऑपरेशन में मोहम्मद आसिफ और मोहम्मद आमिर के साथ-साथ पूर्व कप्तान सलमान बट्ट को फिक्ंिसग का दोषी पाया गया। इस बार किसी भी तरह के आरोप पाक के खिलाडियों पर न लगे उससे पूर्र्व ही पााकिस्तान के गृहमंत्री रहमान मलिक ने अपने देश के क्रिकेट खिलाडियों को एक चेतावनी देकर उन्हें किसी भी तरह की फिक्सिंग से बचने की हिदायत दी है।
    मोहाली में 30 मार्च को होने वाले वल्र्ड कप के सबसे बड़े मैच पर सभी की निगाहें टिकी हैं। मोहाली में होने वाले क्रिकेट महाकुंभ में दोनों देशों के प्रधानमंत्री इस मैच को देखने के लिए उपस्थित होंगे। जिनकेचलते दोनों देशों के क्रिकेट खिलाडिय़ों का उत्साह और अधिक बढ़ जाएगा। मैच के जरिए दोनों देशों के बीच कड़वाहट को कुछ कम करने की कोशिश में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने पाकि स्तान के प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी और राष्टï्रपति आसिफ अली जरदारी को मैच देखने के लिए आमंत्रित किया था। इससे पूर्र्व जनरल जिया उल हक से जनरल परवेज मुशर्रफ तक शांति के नाम पर क्रिकेट मैच देखने के लिए भारत आते रहे हैं। लेकिन समस्या जस की तस बनी हुई है और समय समय पर सीमापार से आतंकी हमले होते रहे हैं। इन हमलों में जाने कितने बेगुनाह और मासूम लोगों को अपनी जान गवानी पड़ी।
    मोहाली स्टेडियम में सीट पाने के लिए क्रिकेट प्रेमियों से ब्लैक मार्केटिंग करने वाले भारी कीमत वसूल रहे हैं। पंजाब क्रिकेट एसोसिएशन के मोहाली स्टेडियम में 25, 500 लोगों के बैठने की क्षमता है पर 22 मार्च तक 15000 टिकटें बिक चुकी थीं। यह मैच देखने के लिए लोगों की बेकरारी का आलम यह रहा कि 15000 वाली टिकट 1 लाख रूपये और 10,000 रूपये की कीमत वाले 50-50 हजार रुपये में बिके। अहमदाबाद में टीम इंडिया ने ऑस्टे्रलिया को हराया था तभी से टीम इंडिया के पक्ष में सटटा लगना शुरू हो गया था। जानकारों के मुताबिक क्रिकेट वल्र्डकप के इस महामुकाबले पर सिर्फ भारत में करीब पांच हजार करोड़ रुपये का सटटा लग चुका है।

Tuesday, March 22, 2011


मेरा  dla पेपर में प्रकाशित एक आर्टिकल