Popular Posts

Friday, June 24, 2011

''जहाँ चाहे शिकायत कर लो, यहाँ ऐसे ही काम होता हैं'' 
मैं दूसरा काउंटर शुरू  नहीं करने वाला, जहां चाहे वहां शिकायत कर लो। मैं अपने हिसाब से यहां काम कराऊंगा बस। अब चाहे किसी का काम हो या न हो और दूसरे बैंक की भी तो यहां शाखाएं है। वहां काम करा लो बस, यहां तो ऐसे ही काम होगा । यह बोल एक स्थानीय एसबीआई बैंक में कार्यरत प्रबंधक के पद पर तैनात सरकारी कर्मचारी के है। उसने यह सब बातें उस वक्त कहीं जब दो-तीन घंटों से लाइन में खड़े होने के बाद कुछ लोगों को लगा कि अब उनका काम होने वाला नहीं है। एसबीआई बैंक ने  रिक्त पदों के लिए विज्ञापन जारी किया था जिसके चलते ऑनलाइन फार्म जमा करना होता है । इससे पूर्र्व आपको एसबीआई बैंक की किसी भी शाखा में जाकर चालान फार्र्म के माध्यम से शुल्क जमा कराना होता है। विज्ञापन के बारे में पता चलने पर मैंने भी सोचा कि चलों मैं भी रिक्त पदों के लिए अपना आवेदन भर देता हूं। इसी सोच के चलते मैं चालान फार्म भरकर उसे जमा कराने एसबीआई बैंक चल दिया।  बैंक पहुंचकर वहां का हाल देखा तो बस अपनी बेरोजगारी और सरकारी व्यवस्था पर बहुत क्रोध आया। वैसे तो बैंक में 7-8 काउंटरों पर काम हो रहा था पर एक काउंटर  पर 40-50 आदमी लंबी लाइन में खड़े हुए थे। बाकी सब काउंटर पर 5-6 लोग ही अपना काम करवा रहे थे। मैंने बैंक  के सुरक्षा कर्मी से पता किया कि सर, एसबीआई की वेकेंसी के जो फार्म निकले हुए है उनकी फीस किस काउंटर पर जमा हो रही है। सुरक्षा कर्मी ने मुस्कान देते हुए कहा -वो देखों जो सबसे लंबी लाइन दिख रही है बस वहां ही हो रही है। इतनी लंबी लाइन देखकर मैं समझ गया कि यहां लगने के बाद कम से कम तीन घंटे लगेंगे तब कहीं जाकर नंबर आएगा और इस बीच कहीं लंच की घंटी बज गयी तो फिर चार-पांच घंटे लाइन में ही बर्बाद हो जाएंगे। मैंने सोचा कि चलो अब में घर वापस चलता हूं लंच के बाद ही वापस आता  हूं  शायद लंच के बाद इतनी लंबी लाइन न मिले और यह भीड भी कम हो जाए। लंच के बाद जब में फिर से बैंक पहुंचा तो मैंने देखा जो हाल पहले था वो ही हाल अब भी बना हुआ था। मैंने कहा अब तो मजबूरी है इस लंबी लाइन में लगना ही पडेगा। सो में लाइन में लग गया । मेरे पीछे एक चश्मा लगाए अंकल भी आकर लग गये। 30-40 मिनट बीत जाने के बाद अंकल ने कहा 4 बजे तक तो लगता नहीं कि हमारा नंबर आ पाएगा, कल भी काम नहीं हो पाया था और शायद आज भी नहीं हो पाएगा। अंकल बोले-चलो मैनेजर से जाकर कहा जाए कि एक दूसरा काउंटर शुरू  करा दे जिससे सब का जल्दी-जल्दी काम हो जाए। पर मैनेजर के पास जाने से कुछ फायदा नहीं हुआ उन्होंने साफ-साफ  कह दिया कि किसी का काम हो या न हो, मैं दूसरा काउंटर शुरू नहीं करवाने वाला हूं। जहां चाहे वहां शिकायत कर लो। अब मैं, अंकल और वो दो लोग जो हमारे साथ मैनेजर से बात करने गये थे क्या करते। अगर हमें भी लाइन में लगे और लोगो का सपोर्ट मिलता तो शायद मेरा  और दुसरे लोगो का काम बन जाता! जाने क्यों इस दौर में लोग सब कुछ देखकर भी अनदेखा करने में लगे है. जब की और दुसरे लोगो को भी पता था की उनका भी काम नहीं होने वाला पर कोई कुछ बोलने को तैयार नहीं था. जाने लोगों में क्या अजीब सा "डर" घर कर गया है जो सब कुछ देखकर भी कोई कुछ बोलने की हिम्मत नहीं करता...जाने हमारा शिक्षित समाज किस अंधकार की और चल पड़ा हैं . हमारी (अल्पमत लोगों की) उस मैंनेजर ने बात नहीं मानी और मुझे बिना काम कराए परेशान होकर वापस लौटना पड़ा।

Saturday, June 18, 2011




अनशन बनाम राजनीति
भटटा परसौल मुददे पर अपनी राजनैतिक रोटियां सेंकने वाले राहुल गांधी दिल्ली रामलीला मैदान में हुई पुलिस कार्रवाई पर चुप क्यों है?  उनकी यह चुप्पी आम लोगों के प्रति उनकी हमदर्दी, चिंता और विकासशील धारणा पर उंगली उठाती है।  सब दलों को पछाडकर सबसे पहले भटटा गांव पहुंचने वाले युवराज ने भटटा गांव के लोगों का हौंसला, हिम्मत बढायी थी। उधर भट्टा परसौल(ग्रेटर नोएडा) में यूपी सरकार और किसानों के बीच हुई जंग को पूरे देश की जनता ने देखा। इस जंग में 4 किसानों और 2 पुलिस कर्मियों की मृत्यु हो गई थी। भट्टा की आग से केंद्र भी सुलगने से नहीं बच सका और यूपीए सरकार के युवराज राहुल गांधी भट्टा परसौल पहुंच गए। राहुल गांधी  ने भट्टा गांव पहुंचकर किसानों का दुख दर्द सुना और उनकी आवाज को अपनी आवाज बनाकर उन्हें न्याय दिलाने की बात कही।
    भट्टा गांव के किसानों पर पुलिसिया कार्रवाई की आवाज राहुल गांधी को दिल्ली में पहुंच जाती है जबकि पिछले दिनों दिल्ली के रामलीला मैदान में बाबा रामदेव के अनशन में जुटे लोगों पर दिल्ली पुलिस की कार्रवाई के बाद मासूम जनता की आवाज उन्हें सुनाई नहीं देती। सभी टीवी चैनलों ने दिखाया कि किस तरह देश की मासूम और भोली जनता पर रात के 2 बजे दिल्ली पुलिस ने बर्बरतापूर्ण कार्रवार्ई की। इस कार्रवार्ई के दौरान जो भगदड़ मची उसमें न जाने कितने बेगुनाह लोगों को चोट आयीं। पर युवराज राहुल गांधी ने अभी तक देश की मासूम और निर्दोष लोगों पर हुई कार्रवार्ई के विरोध में कुछ प्रतिक्रिया देने की जरूरत नहीं समझीं और न ही यूपीए अध्यक्षा सोनिया गांधी ने इस बारे में कोई बयान जारी किया है। हां, एक बार फिर मान्यनीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अपने विवशता जाहिर की। उन्होंने रामलीला मैदान में हुई पुलिस की कार्रवाई को दुर्भाग्यपूर्ण बताया और इसके अलावा अन्य कोई विकल्प न होने की बात कही।  जनता जिसे भारतीय संविधान में सर्वोच्च शक्ति प्राप्त है। ऐसे मौको पर अपने को ठगा सा महसूस करती है।
   भ्रष्टाचार और गरीबी से त्रस्त जनता के लिए कोई नेता, बाबा या सामाजिक कार्यकर्ता लडऩे की बात करता है तो जनता में एक आशा की किरण जाग उठती है और उन्हें लगता कि  शायद...अब हमारी समस्या, मजबूरी से हमें छुटकारा दिलाने वाला आ गया है और बस अब हमें लूट, भ्रष्टाचार से राहत मिल जाएंगी। इस चाहत और विश्वास को लेकर मासूम लोग, महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग सभी अनशन में जुटते है। पर उन्हें इस चाहत के बदले क्या मिलता है ? आफत, परेशानी और पिटाई। आखिर कब तक देश की जनता पर सरकार अपनी नौकरशाही का रौब डालकर उसे डराती रहेगी और जन चेतना को दबाये रखेगी, जिस दिन इस चेतना ने ज्वाला को रूप धारण कर लिया तो कोई बल उन्हें भ्रष्टाचारसे मुक्ति दिलाने से नहीं रोक सकेगा।