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Thursday, August 11, 2011


देशभक्तों की कुर्बानियां और हमारे स्वार्थ में होती 'जंग'
15 अगस्त के ऐतिहासिक महत्व को हर कोई जानता है इसे किसी परिचय की आवश्यकता नहीं है। शिक्षित वर्ग अच्छी तरह से जानता है कि हमारे शूरवीर क्रांतिकारियों ने अपने प्राणों की परवाह न कर देश की आजादी के लिए बलिदान वेदी पर अपनी आहूति दी और अपनी आने वाली पीढी के लिए खुशहाल, स्वाधीन, गौरवमय माहौल देने के सपना लिए वे इस दुनिया को अलविदा कह गए।
   पर क्या आज जो कुछ हमारे देश, समाज में घटित हो रहा है उसकी कल्पना हमारे पूर्वजों, स्वतंत्रता संग्राम में शामिल, क्रांतिकारियों ने की होगी? आज जहां देखों वहीं लूटपाट, बलात्कार, भ्रष्टाचार और घोटालों का ही बोलबाला है। आप कोई भी चैनल, समाचार पत्र देखों उस में यहीं सब चीजें प्रमुखतया से आपको देखने को मिलेंगी। 
  गीता में कहा गया है कि आत्मा अजर है, अमर है.. अगर इन बातों को आधार बनाकर देखा जाये तो हमारे क्रांतिकारियों की आत्माएं आज हमारी दयनीय, असहाय और लालचपूर्ण रवैये को देखकर हमें कचौटती होगी और कहती होगी हमने भी किन लोगों को स्वाधीन कराने के लिए अपने जीवन के सभी सुखों को त्याग दिया था। इनके लिए तो वो अंगे्रजो के शासन वाला समय ही अच्छा होता, कब से कब कोडे के भय के चलते इतने घोटाले और भ्रष्टाचार, लूटपाट तो न होती।
  1857 के स्वतंत्रता संग्राम को चिंगारी देने वाले मंगल पांडे, सुभाषचंद बोस, भगतसिंह, चंद्रशेखर आजाद, लाला लाजपत राय, सुखदेव, बटुकेश्वर दत्त, राजगुरू, लोकमान्य तिलक आदि क्रांतिकारियों ने अपने सम्पूर्ण जीवन को 'भारत माता' को स्वतंत्रता दिलाने में लगा दिया था। देश को आजादी दिलाने के लिए महात्मा गांधी ने 9 अगस्त 1942 को 'करो या मरो' का नारा दिया था जिसमें समाज के हर वर्ग ने बढ़-चढकर हिस्सा लिया और देश को आजादी के द्वार पर पहुंचाया। पर आज का युवा  और बुद्धिजीवी वर्ग को समाज में फैली अव्यवस्था और 'कुप्रथा' से कोई लेना देना नहीं है बल्कि सभी उसी प्रथा के तहत अपना योगदान दे रहे है। किसी प्रकार का कोई विरोध स्वर नहीं उठाता है अगर कोई उठाने की हिम्मत करता भी है तो सरकार उसका क्रूरतापूर्वक दमन करने को आतुर है। 
  हाल ही में बाबा रामदेव के रामलीला मैदान में आयोजित अनशन का शासन ने कुछ इसी तरह से दमन किया था। लोकपाल बिल का झंडा लेकर चल रहे अन्ना हजारे ने देश से भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए एक मुहिम चलायी हुई है जिसमें युवा वर्ग कुछ दिलचस्पी ले भी रहा है। अन्ना हजारे और सरकार में लोकपाल बिल पर मतभेद है। अब देखना यह होगा कि 'महात्मा' हजारे अपने अगस्त आंदोलन से सरकार को कितना हिला पाते है। यह आंदोलन 16 अगस्त से जयप्रकाश नारायण नेशनल पार्क से शुरू होने वाला है।

Thursday, August 4, 2011

Facebook ur Ghaziabad


गाजियाबाद पुलिस की ''फेसबुक'' में लोगों का भरोसा नहीं ?
अत्याचार, अव्यवस्था के खिलाफ अब पूरी दुनिया में आवाजें उठने लगी है। सब लोगों का विरोध करने का तरीका अलग-अलग है कुछ लोग समूहों में एकत्र होकर, धरने-प्रदर्शन कर अपना विरोध जताते है तो दूसरी तरफ कुछ लोग (जिन्हें आप नेटीजन कहे सकते है) इंटरनेट के माध्यम से अपना विरोध प्रकट करते है। ऐसा पिछले कुछ दिनों में देखने को मिला भी । हाल ही में पश्चिम बंगाल में हुए चुनावों में इन नेट यूजर्स ने बड़ी भूमिका निभाई। नेट के माध्यम से लोगों को निवर्तमान सत्ता के खिलाफ सोचने और कुछ नया करने के लिए प्रेरित किया गया। जिसके चलते तीन दशक से ज्यादा कब्जा जमाये सत्ताधारियों को अपनी कुर्र्सी से हाथ धोना पड़ा।
सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक के जरिए लोग अपना विरोध आसानी से जता रहे है। विरोध शासन-प्रशासन में फैली अव्यवस्था के खिलाफ हो  या फिर बीच सड़क में जाम लगाये पुलिस कर्मियों की बदइंतजामी के। फेसबुक पर दिल्ली ट्रैफिक पुलिस के पेज को अब तक 73 हजार से ज्यादा लोग पसंद कर चुके है। इसके लोकप्रिय होने का कारण यह है कि फेसबुक यूजर्स कहीं भी दिल्ली पुलिस या अन्य लोगों को बिना हेलमेट पहने, बिना सीट बेल्ट लगाये या वाहन चलाते वक्त मोबाइल का यूज करते हुए उनकी फोटो को अपने कैमरे में कैद कर लेते है औैर उसे दिल्ली ट्रैफिक पुलिस के अकाउंट पर समय और जगह के साथ डाल देते है। जिसके जवाब में दिल्ली पुलिस प्रभावी कार्रवाई करती है। दिल्ली की तर्र्ज पर फरीदाबाद में भी फरीदाबाद ट्रैफिक पुलिस ने अपना अकाउंट बनाया है जिसे कुछ ही समय में 700 से अधिक लोगों ने लाइक किया है। फरीदाबाद के लोगों में इस नये तरीके से की जाने वाली कार्रवार्ई के चलते एक जूनून सा छाया हुआ है। 
 फेसबुक यूजर्स की इस दौड़ में उत्तर प्रदेश काफी पीछे रह गया है।  यूपी ट्रैफिक पुलिस के अकाउंट को 2500 से अधिक लोगों ने लाइक किया है। नोएडा टे्रफिक पुलिस के अकाउंट को अब तक लगभग 500 लोगों ने पसंद किया है। जबकि गाजियाबाद ट्रैफिक पुलिस के अकांउट को लाइक करने वाले लोगों को आंकड़ा बहुत कम है। इनकी संख्या शतक से भी कम है। क्या गाजियाबाद की पब्लिक तकनीक की इस दौड़ में पिछड़ गयी है ? या फिर लोगों में गाजियाबाद पुलिस द्वारा की जाने वाली कार्रवाई के प्रति विश्वास की कमी है? कुछ लोगों का कहना है कि जब यूपी पुलिस ऑन रोड़ घटित होती घटना को ही नहीं रोक पाती तो नेट के माध्यम से क्या कार्रवाई करेगी! शायद इसी वजह के चलते नेटीजन गाजियाबाद ट्रैफिक पुलिस अकाउंट को कम लाइक करते है।